मुस्लिम शासक भी मनाते थे हिंदुओं के त्यौहार

नवरात्र देशभर में पूरी श्रद्धा से मनाया जाता है. सन 1398 ईसवी में जब तैमूर ने दिल्ली पर हमला किया तब उस समय नवरात्र चल रहे थे. उस वक्त कालकाजी मंदिर और झंडेवालान में बड़े स्तर पर नवरात्र मनाया जाता था. कहा जाता है कि झंडेवालान मंदिर 12वीं शताब्दी के दौरान पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल में बनाया गया था. राजा की बेटी ने इस इलाके में मंदिर का निर्माण करवाया था. तैमूर इसके 200 साल बाद दिल्ली आया था.



सोलहवीं सदी में मुग़ल बादशाह अकबर मथुरा के कृष्ण मंदिरों में जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल को झूला झुलाने जाता था. उसके बाद सम्राट बने जहाँगीर को होली खेलने का बहुत शौक था. वह टेसू के फूलों और केसर से बने रंगों के साथ अपनी बेगमों और दरबारिओं से होली खेलता था. शाहजहाँ दिल्ली में लालकिले के सामने दशहरे पर श्रीराम-जानकी शोभायात्रा में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता था. उसके बाद से ही वहां रामलीला की शुरुआत हुई बताई जाती है. दिवाली पर वह अपने सभी दरबारियों और हिन्दू मित्रों को मिठाइयां और तोहफे भेंट करता था.औरंगज़ेब को बसंत पंचमी और होली से विशेष लगाव था. वह इन त्योहारों पर दोनों हाथों से धन लुटाता था.  


तैमूर के करीब 341 साल बाद 9 मार्च 1739 को नादिर शाह ने चढ़ाई की थी. उस वक्त भी नवरात्र शुरू होने वाले थे. मोहम्मद शाह रंगीला और मुगल बादशाह का रुख़ काफ़ी धर्मनिरपेक्ष था. इन सभी मुस्लिम सम्राटों ने बसंत पंचमी, होली और दिवाली जैसे त्योहार मनाए थे.



नादिर शाह के आक्रमण के 100 साल बाद आए अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर को दाल और रसा (पूरियों के साथ) खाने के बहुत शौक था. नवरात्र के मौके पर ये पकवान मुग़ल दरबार में चांदनी चौक के सेठ भेजा करते थे.


हिंदू त्योहारों में मुगल राजाओं की सहभागिता के कई ऐतिहासिक सबूत मिलते हैं. शाह आलम ने नवरात्र के मौके पर दिल्ली के कालकाजी मंदिर के पुनर्निर्माण में मदद की थी. उसके उत्तराधिकारी अकबर शाह भी उनके नक्शे कदमों पर चले. अकबर के बेटे ने भी ऐसा ही किया. इसके बाद ब्रिटिश राज शुरू हुआ.


               


बंटवारे के बाद नवरात्र को और ज़ोर शोर से मनाया जाने लगा. इससे पहले ये त्योहार प्राचीन मंदिरों में मनाया जाता था. लेकिन अब नवरात्र का त्योहार लोग अपने मौहल्लों में मनाने लगे हैं. लोग भंडारे करते हैं और ना सिर्फ भक्तों को बल्कि आस-पास से गुज़रने वाले हर व्यक्ति को खाना खिलाते हैं. भंडारे में आम खाना नहीं होता. इसे बनाने वालों की भक्ति और भावनाएं इसे खास और अधिक स्वादिष्ट बना देती हैं.


नवरात्र के दौरन छतरपुर में लगने वाला मेला खासा लोकप्रिय है. यहां होने वाले भंडारे में लोग लंबी-लंबी कतारे लगाए नज़र आते हैं. ये खाना हर तबके के लोगों के लिए मुफ्त होता है. छतरपुर के मंदिर में देवी की मूर्ति सोने की है. इसी मंदिर के पास एक और मंदिर है. कहा जाता है कि ये काफ़ी पुराना मंदिर है. कुछ लोगों के मुताबिक ये मंदिर मुस्लिम शासकों के दौर में बना था.


दिल्ली के कालकाजी मंदिर को भी ऐतिहासिक बताया जाता है, नवरात्र महोत्सव के अलावा वहां हर मंगलवार देवी काली मां के सम्मान में एक मेला भी लगता है. झंडेवालान में भी बहुत से मंदिर हैं. यहां भी देवी का एक बहुत पुराना मंदिर है. नवरात्र के मौके पर यहां लोग भारी भीड़ में आते हैं. नवरात्र के दौरान यहां लगे भंडारों में एक दोपहर में 60-60 हज़ार लोग भंडारा खाते हैं.


दिल्ली में कनॉट प्लेस और यमुना बाजार के प्राचीन हनुमान मंदिरों में भी मंगलवार और शनिवार को भक्तों का तांता लगता है. नवरात्र के दिनों में ब्राह्मणों और हलवाइयों की भी खूब कमाई होती है. लेकिन महंगाई और बढ़ते दामों के इस दौर में इनकी आमदनी पर भी असर पड़ा है.